Monday, January 31, 2011
सरकार अहिंसा की भाषा नहीं समझती है?
अहिंसा के सबसे बड़े पुजारी स्वर्गीय श्री महात्मा गाँधी के इस राम राज्य और अहिंसा कल्पित राज्य में आज अहिंसा की भाषा कोई नहीं सुनता है. अहिंसा के मार्ग को अपनाते हुए यदि कोई अपने अधिकारों के लिए लड़ता है तो सरकार के कानों के परदे तक उनकी आवाज नहीं पहुचती है. इतिहास गवाह है. जब तक दंगे फसाद न हो, सड़कों पर हौ हल्ला न हो, बसों, ट्रेनों में तोड़ फोड़ न हो, चक्का जाम न हो, तब तक सरकार में चेतना का प्रवाह नहीं होता है. ये आज इस देश का दुर्भाग्य ही है कि गाँधी को अपना आदर्श बताने वाली हर एक राजनीतिक पार्टी उनके बताये गए सिधांतों से बहुत दूर है. उत्तराखंड की राजनीती में राजधानी गैरसैण मसले पर भी यही कुछ आगे होने वाला है. गैरसैण को एक राजनीतिक मुद्दा बनाकर उसकी उत्तराखंड की अस्मिता के साथ एक घृणित खेल खेला जा रहा है. जब तक शांत प्रिय प्रदर्शन होते रहेंगे, राजधानी गैरसैण मसले का कुछ नहीं होने वाला है. जब तक एक बार फिर से सम्पूर्ण उत्तराखंड जन समूह सड़कों पर नहीं उतरेगा, तोड़ फोड़ का रास्ता नहीं अपनाएगा तक तक कम से कम मेरी दृष्टि से तो राजधानी गैरसैण की कल्पना की ही नहीं जा सकती है.
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1 comment:
Dear Sir
Very Nice.
R.S.Nagie
blog: rsnagie.blogspot.com
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