Thursday, April 24, 2008

क्या उत्तर पुस्तिका सार्वजनिक होनी चाहिए

दोस्तो इस विषय के साथ मैं अपने नए ब्लॉग के साथ आप लोगों के बीच में आ रहा हूँ . अपने नये ब्लॉग को मैंने नाम दिया है "नजर". नजर नाम देने का एक मात्र कारण यह है कि कभी कभी मैं समाचार पत्रों की ओर अपनी नजर फिरा लेता हूँ और बहुत कुछ पढने को मिलता है, कभी कभी मैं ऐसे लेखों से भी होकर गुजरता हूँ जिस पर अपने विचार ब्यक्त करने के लिए मैं लालायित हो जाता हूँ , समाचार पत्रों में मैं अपने विचार तो प्रेषित नही कर सकता हूँ , इसीलिए सोचा इंटरनेट के ब्लॉग माध्यम से आप लोगों के बीच अपने मन के द्वंद को बाटों. वैसे न तो मैं लेखक हूँ और न ही कवि और न ही मुझमे लिखने की कला, बस केवल टूटे-फूटे शब्दों में अपनी बात आप लोगों तक पहुचाना चाहता हूँ . मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप लोग जरूर मुझे मार्गदर्शित करेंगे.


दोस्तो एजुकेशन और कैरियर हमारे जीवन का एक मह्त्वापूर्ण अंग है जो कि हमारा भविष्य तय करते है. सोचो यदि कोई हमारे भविष्य के साथ खिलवाड़ करे तो इसका परिणाम क्या हो सकता है, हम ख़ुद इसका अंदाजा लगा सकते है.

दोस्तो बहुत समय सुनने को मिलता है जब कई विद्यार्थी और अन्य प्रतियोगी कहते है कि मेरा फलाना पेपर / परीछा तो बहुत अच्छा गया था, मुझे तो पूरी उमीद थी पास होने की, अच्छे नम्बर आने की फ़िर भी मैं पास नही हुआ या मेरी अच्छी नम्बर नही आयी. मैं मात्र १ या २ नंबर्स से पीछे रहा गया. इस प्रकार के विभिन प्रश्न हमारे मन मस्तिष्क में घुमते रहते है. आख़िर ऐसा क्योँ हुआ? हम इसका कारन ढूढने की कोशिश तो करते है लेकिन कुछ कर नही सकते.

दोस्तो वैसे कोई भी एक्साम या प्रतियोगिता पास करना हमारी अपनी मेहनत पर निर्भर करता है, जैसी हम मेहनत करेंगे वैसा ही हमको परिणाम मिलेगा, लेकिन कभी कभी हम मेहनत तो पूरी करते है लेकिन उसके अनुसार हमको परिणाम प्राप्त नही होता है. क्योँ हमको इसके अनुसार परिणाम प्राप्त नही होता है, इसके कई दोषी हो सकते है

बहुत बार सुनने को मिलता है कि फलाना बोर्ड की कॉपियाँ कूड़े के ढेर में मिली या अध्यापक के बच्चों को कॉपियाँ जांचते हुए पाया गया या पैसे देकर फलाने ने परीछा में टॉप किया या पैसे में डिग्री खरीदी गई. इस प्रकार की कई खबरें अक्सर सुनने को मिलती है. इसका परिणाम कोण भुगतेगा?

दोस्तो मेरा मुख्य विन्दु यह है कि क्या किसी भी परीक्षा या प्रतियोगिता परीक्षा के बाद उत्तर पुस्तिका प्रतियोगी को आवश्यकता पड़ने पर दिखाई देनी चाहिए? क्या अब ऐसा समय आ गया है जब हमको इस प्रकार के कानून की आवश्यकता हो गई है ? क्या हमको ऐसा अधिकार मिलना चाहिए कि हम अपनी उत्तर पुस्तिका का स्वयं मूल्यांकन परिणाम घोषित होने के बाद कर सकें ?

दोस्तो यदि कोई ऐसा कानून बनता है तो निश्चित ही इसके कई धनात्मक प्रभाव हमारे समाज और सरकारी, निजी तंत्र में देखने को मिलेंगे. सबसे पहला जो लाभ मिलेगा वो है पारदर्शिता की. दूसरा लाभ भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में मदद मिल सकती है, कैसे मिल सकती है , ये बात आप खुद सोच समझ सकते है. इसमे मुझे ज्यादा कुछ लिखने की जरूरत नही है .

मेरा यहा पर लिखने का एक मात्र उद्देश्य यह है कि मैं आप लोगों के विचार भी जानना चाहता हूँ कि क्या वास्तव मे हमको एक ऐसे कानून की जरूरत है, जो हमारे आने वाली युवा पीढ़ी को या हमारे उन प्रतियोगी भाई-बहिनों को ये अधिकार दे कि वे अपने प्रतियोगी परीक्षाओं की उत्तर पुस्तिकाओं का स्वयं मूल्यांकन कर सके आवश्यकता पड़ने पर.

अपने विचार जरूर देन